ठोसों का वर्गीकरण
- ठोसों को तीन भागों में बांटा जा सकता है; चालक (conductor), अर्द्धचालक (semiconductor) तथा कुचालक (insulator)।
विद्युत दृष्टिकोण के आधार पर
चालक
- इन पदार्थों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश के कक्षक प्रारम्भ में पूर्ण भरे नहीं होते हैं।
- इनके संयोजी इलेक्ट्रॉन नाभिक से शीथिल बन्धे होते हैं, इसलिए इनको नाभिक से मुक्त किया जा सकता है।
- इनकी विद्युत तथा ऊष्मीय चालकता उच्च होती है।
- ये स्थायी अवस्था में ओह्म के नियम का पालन करते हैं।
- ताप के बढ़ाने पर इनका प्रतिरोध बढ़ता है, अर्थात् चालक का ताप गुणांक धनात्मक होता है।
- सोना, चांदी, एल्यूमिनियम आदि चालक के उदाहरण हैं।
कुचालक
- इन पदार्थों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश संतृप्त होते हैं।
- इनके संयोजी इलेक्ट्राॅन नाभिक से दृढ़ता से बन्धे होते हैं, इसलिए इनको परमाणुओं से मुक्त नहीं किया जा सकता है या प्रायोगिक रूप में इनमें कोई भी मुक्त इलेक्ट्राॅन नहीं होते हैं।
- इनकी विद्युत चालकता अत्यन्त अल्प या विद्युत प्रतिरोधकता अत्यन्त अधिक होती है।
- कांच, माइका, क्वार्ट्ज, एबोनाइट आदि कुचालक के उदाहरण हैं।
अर्द्धचालक
- इन पदार्थों के परमाणुओं की चालकता, चालक एवं कुचालक के मध्य होती है।
- इन पदार्थों की प्रतिरोधकता चालक से अधिक तथा कुचालक से कम होती है।
- इनकी चालकता, चालक से कम तथा कुचालक से अधिक होती है।
- इनका प्रतिरोध तथा प्रतिरोधकता ताप के बढ़ाने पर घटता है, अर्थात् अर्द्धचालकों का ताप गुणांक ऋणात्मक होता है।
- अर्द्धचालकों की चालकता कुछ अशुद्धि मिलाकर बढ़ाई जा सकती है।
- Ge, Si, आदि अर्द्धचालक के उदाहरण हैं।
ऊर्जा बैण्ड के आधार पर
- पदार्थों के विद्युत गुणों को ऊर्जा बैण्डों के आधार पर समझाया जा सकता है।
- ठोस में इलेक्ट्राॅनों की केवल वे विविक्त ऊर्जाएं सम्भव हैं, जो इन ऊर्जा बैण्डों में होती है, इस प्रकार के बैण्ड अनुमत ऊर्जा बैण्ड कहलाते हैं।
- अनुमत ऊर्जा बैण्ड कुछ अन्तरालों से पृथक होते हैं, जिनमें कोई भी ऊर्जा बैण्ड नहीं होता है, यह ऊर्जा अन्तराल वर्जित ऊर्जा बैण्ड कहलाता है।
- वे ऊर्जा बैण्ड, जिनमें संयोजी इलेक्ट्राॅन होते हैं, संयोजी बैण्ड (valence band, V.B.) कहलाते हैं तथा जिन ऊर्जा बैण्डों में चालन इलेक्ट्राॅन होते हैं, चालन बैण्ड (conduction band, C.B.) कहलाते हैं।
- संयोजी बैण्ड तथा चालन बैण्ड के मध्य का ऊर्जा अन्तराल, ऊर्जा रोधिका या वर्जित ऊर्जा अन्तराल कहलाता है।
- ऊर्जा अन्तराल जितना अधिक होता है, विद्युत चालकता उतनी ही कम होती है।
चालक
- इनमें V.B. तथा C.B. में ऊर्जा अन्तराल शून्य होता है, या दोनों बैण्ड अतिव्यापित होते हैं।
- इनके C.B. में पर्याप्त संख्या में मुक्त इलेक्ट्राॅन होते हैं।
- इनमें मुक्त इलेक्ट्राॅनों की गति के लिए बहुत कम स्थान या कोई स्थान नहीं होता है।
- कमरे के ताप पर चालकों की चालकता अत्यन्त अधिक होती है तथा ताप बढ़ाने पर चालकता में कमी आती है।
कुचालक
- इनके V.B. पूर्णतः भरे तथा C.B. पूर्णतः खाली होते हैं।
- इनमें V.B. तथा C.B. के मध्य अन्तराल अत्यन्त अधिक होता है।
- ताप बढ़ाने पर कुचालकों की चालकता को बढ़ाया जा सकता है।
अर्द्धचालक
- अर्द्धचालकों के C.B. तथा V.B. आंशिक रूप से भरे होते हैं।
- इनमें V.B. तथा C.B. के मध्य ऊर्जा अन्तराल अत्यन्त कम (लगभग 1 eV) होता है।
- परम् शून्य ताप पर अर्द्धचालक, कुचालक की भांति व्यवहार करते हैं।
- ताप बढ़ाने पर अर्द्धचालकों की चालकता बढ़ती है या प्रतिरोधकता घटती है।
- अत्यन्त उच्च ताप पर अर्द्धचालक, चालक की भांति व्यवहार करते हैं।
ठोसों में ऊर्जा बैण्ड (Energy band diagram of solids)
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