पिण्ड लोलक (भौतिक लोलक)
- एक दृढ़ पिण्ड, जो पिण्ड मेंं से गुुजरने वाली ऐसी क्षेतिज अक्ष जो गुुरूत्व केन्द्र से नहीं गुजरती है, के सापेक्ष ऊर्ध्वाधर तल में दोलन करने में सक्षम हो पिण्ड लोलक कहलाता है।
- माना एक पिण्ड लोलक जो दृढ़ पिण्ड के रूप में है, का द्रव्यमान m है।
- माना यह दोलक S (निलम्बन बिन्दु) से जाने वाली क्षेतिज अक्ष से लटकाया गया है।
- G = गुरूत्व केन्द्र तथा SG = l
- साम्यावस्था में G, S के ऊध्र्वाधर नीचे स्थित होता है।
- अब वस्तु को θ कोण से अल्प विस्थापित किया जाता है जिससे कि G, G’ पर विस्थापित हो जाता है।
- जब वस्तु अल्प विस्थापित होती है तो वस्तु के भार के कारण इस पर एक प्रत्यानयन बल युग्म कार्य करता है, जो वस्तु को साम्यावस्था में लाने का प्रयास करता है।
- प्रत्यानयन बल युग्म τ = – mg× G’N
τ = – mgl sin θ
- यदि I, S से गुजरने वाली क्षेतिज अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण हो तथा α कोणीय त्वरण हो, तो
- विक्षेपक बल युग्म
- यदि θ अत्यन्त अल्प हो, तो sin θ ≈ θ
- यह पिण्ड लोलक की कोणीय सरल आवर्त गति का समीकरण है।
आवर्त काल
T = 2π/ω0
∵ ω0 = √(mgl/I)
∴ T = 2π √ (I/mgl)
- यदि गुरूत्व केन्द्र से गुजरने वाली अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण I0 हो, तो समान्तर अक्ष प्रमेय से,
I = I0 + ml2
- यदि गुरूत्व केन्द्र से जाने वाली अक्ष के सापेक्ष परिभ्रमण त्रिज्या k हो, तो
- यदि सरल लोलक की प्रभावी लम्बाई L हो, तो आवर्त काल T = 2π √ (L/g)
- अतः यदि सरल लोलक की प्रभावी लम्बाई L = l + k2 / l हो, तो सरल लोलक तथा पिण्ड लोलक के आवर्त काल समान होते हैं।
- इसलिए L = l + k2 / l तुल्य सरल लोलक की लम्बाई कहलाती है।
- यदि हम SG’ को O तक इस प्रकार बढ़ाए कि SO = l + k2/ l
- इस अवस्था में O दोलन केन्द्र कहलाता है।
- Here G’O = k2 / l = l‘ (say)
- यहां L = l + l‘
- अतः T = 2π √ {(l + l‘)/g}
- यदि हम निलम्बन बिन्दु तथा दोलन बिन्दु को आपस में बदल दें तो नया आवर्त काल होगा
- अतः निलम्बन बिन्दु तथा दोलन बिन्दु आपस में बदले जा सकते हैं।
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