साम्यावस्था तथा विभव कूप की अभिधारणा
- सभी संरक्षी क्षेत्र में स्थितिज ऊर्जा U = U (x, y, z)
- यदि कण केवल x-अक्ष के अनुदिश गति करता है, तो बल Fx = – (∂U/∂x)
- इसी प्रकार Fy = – (∂U/∂y) and Fz = – (∂U/∂z)
- बल = वक्र के किसी भी बिन्दु पर स्पर्श रेखा का ढाल
- चूंकि P, Q, R तथा S पर खींची गई स्पर्श रेखाएं x-अक्ष के समान्तर हैं
- ये स्थितियां सन्तुलन स्थितियां कहलाती हैं।
- यदि कण को स्थाई सन्तुलन वाली स्थिति P से अल्प विस्थापित किया जाए तो यह बिन्दु A तथा B के मध्य दोलन करने लगता है, जब तक कि यह बिन्दु B को पार नहीं कर जाता।
- P न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा वाली स्थिति है तथा यह स्थाई सन्तुलन की स्थिति कहलाती है।
- स्थितिज ऊर्जा वाला वह क्षेत्र, जो बिन्दु A तथा B के मध्य बद्ध है, विभव कूप कहलाता है।
- किसी विभव कूप के अधिकतम तथा न्यूनतम स्थितिज ऊर्जाओं का अन्तर उस विभव कूप की बंधन ऊर्जा कहलाता है।
- यदि कण की ऊर्जा कूप की बंधन ऊर्जा से कम हो, तो कण सदैव विभव कूप में बद्ध होगा तथा इस प्रकार की अवस्था बद्ध अवस्था कहलाती है।
- माना एक कण अपनी माध्य स्थिति P = (x = x0) से अल्प विस्थापित होता है, तो टेलर श्रेणी प्रसार से किसी बिन्दु x पर कण की स्थितिज ऊर्जा
- स्थाई सन्तुलन की स्थिति P के लिए
- यदि P मूल बिन्दु पर स्थित हो, अर्थात् x0 = 0 तथा U(x0) = 0
- अल्प विस्थापन के लिए x3 → 0, x4 → 0, …
- इस स्थिति में विस्थापन तथा स्थितिज ऊर्जा के मध्य खींचा गया वक्र परवलय होगा तथा F ∝ x
- अतः परवलयिक विभव कूप में कण की गति सदैव दोलनीय तथा सरल आवर्ती होती है।
विभव कूप की अभिधारणा की और अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।