हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त
- इस सिद्धान्त के अनुसार दो विहिप रूप से संयुग्मित चरों को सटीक रूप से एक साथ ज्ञात करना असम्भव है।
- यदि हम एक भौतिक राशि का मापन यर्थाथत से करें तो दूसरी भौतिक राशि में अनिश्चितता बहुत अधिक हो जाती है।
- यह सिद्धान्त केवल सूक्ष्म कणों पर दिखाई देता है, स्थूल पिण्डों पर नहीं।
- यदि Δp = संवेग में अनिश्चितता तथा Δx = स्थिति में अनिश्चितता हो, तो हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धान्त से
Δx × Δp ≥ ħ / 2
- यहां ħ = h / 2π तथा यह समानित प्लांक नियतांक कहलाता है।
- यदि ΔE तथा Δt क्रमशः ऊर्जा तथा समय में अनिश्चितता हो, तो हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता सिद्धान्त होगा
ΔE × Δt ≥ ħ / 2
- तथा यदि ΔJ एवं Δϕ क्रमशः कोणीय संवेग तथा कोणीय विस्थापन में अनिश्चितता हो, तो हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता सिद्धान्त होगा
ΔJ × Δϕ ≥ ħ / 2
- हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धान्त की सहायता से आंकिक समस्याओं को हल करते समय हम सामान्यतः निम्न सम्बन्ध का उपयोग करते हैं।
Δx × Δp ≈ ħ
अनिश्चितता सिद्धान्त का भौतिक महत्व
- यदि किसी कण की स्थिति को अधिक यथार्थता से मापा जाए तोΔx = 0 होगा तथा इस अवस्था में Δp = ∞ अर्थात् संवेग में अनिश्चितता अनन्त होगी।
- यदि किसी कण के संवेग को अधिक यर्थाथता से मापा जाए तो Δp = 0 तथा इस अवस्था में कण की स्थिति में अनिश्चितता Δx = ∞ अर्थात् अनन्त होगी।
- यदि m द्रव्यमान का कोई कण v वेग से गति करता है, तो अनिश्चितता सम्बन्ध होगा
Δx × Δv ≈ ħ / m
- चूंकि बहुत अधिक भारी कण के लिए m का मान अत्यन्त अधिक होता है, इसलिए Δx × Δv का मान बहुत कम होगा।
- अतः अत्यधिक भारी कण हम कण की स्थिति तथा वेग दोनों यथार्थता से ज्ञात कर सकते हैं।
अनिश्चितता सिद्धान्त की उपपत्ति
गामा किरण सूक्ष्मदर्शी विधि (Thought experiment)
- माना वह इलेक्ट्रॉन जिसकी स्थिति (x) तथा संवेग (p) ज्ञात करना है, वह प्रारम्भ में बिन्दु P पर है।
- विवर्तन सिद्धान्त से सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा
Δx = λ / 2 sin θ
- Δx = दो बिन्दुओं के मध्य की वह दूरी जहां तक कि उन्हें अलग-अलग देखा जा सकता है।
- अतः Δx इलेक्ट्राॅन की स्थिति में अधिकतम अनिश्चितता है।
- चूंकि 𝛾-किरण की तरंग दैर्ध्य अत्यन्त कम होती है, इसलिए इसका चयन किया जाता है, क्योंकि इससे Δx का मान घटता है।
- माना कम से कम एक 𝛾-किरण फोटॉन इलेक्ट्रॉन द्वारा सूक्ष्मदर्शी में प्रकीर्णित होता है, इसलिए इलेक्ट्रॉन हमें दिखाई देता है।
- इस प्रक्रिया प्रकीर्णित फोटॉन की आवृत्ति तथा तरंग दैर्ध्य परिवर्तित होते हैं तथा इलेक्ट्रॉन संवेग ग्रहण कर कॉम्पटन प्रतिक्षिप्त (Compton recoil) होता है।
- यदि λ प्रकीर्णित फॉटोन की तरंगदैर्ध्य हो, तो प्रकीर्णित फॉटोन का संवेग, p = h / λ
- चूंकि प्रकीर्णित फॉटोन PA से PB के मध्य किसी भी दिशा में प्रकीर्णित हो सकता है, इसलिए संवेग का x-दिशा में घटक [(h / λ) sin (-θ)] से (h / λ) sin θ] के मध्य होगा, के मध्य होगा अर्थात् यह – [(h / λ) sin θ] से (h / λ) sin θ के मध्य होगा।
- यदि λ՛ आपतित फॉटोन का तरंगदैर्ध्य हो, तो आपतित फॉटोन का संवेग होगा, p՛ = h / λ՛
- अतः फॉटोन के संवेग में परिवर्तन निम्न के मध्य होगा
- अतः कण की स्थिति तथा संवेग के एक साथ मापन के लिए सूक्ष्मदर्शी हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धान्त का पालन करती है।
स्लिट द्वारा इलेक्ट्रॉन का विवर्तन
- AB = एक संकीर्ण स्लिट है, जिस पर इलेक्ट्रॉन पुंज आपतित होता है।
- चूंकि इलेक्ट्रॉन पुंज तरंग प्रवृत्ति दर्शाता है, इसलिए हमें फोटोग्राफिक प्लेट पर फ्रानहॉफर विवर्तन प्रारूप प्राप्त होता है।
- फोटोग्राफिक प्लेट पर प्राप्त फ्रानहॉफर विवर्तन प्रारूप यह दर्शाता है कि इलेक्ट्रॉन पुंज निश्चित रूप में स्लिट AB के किसी भाग से गुजरता है, परन्तु यह स्लिट के किस भाग से गुजरता है, यह कहा नहीं जा सकता।
Δy = स्लिट की चौड़ाई = इलेक्ट्रॉन की स्थिति में अधिकतम अनिश्चितता
- जैसे-जैसे स्लिट की चौड़ाई घटती है, अनिश्चितता भी घटती है।
- λ = इलेक्ट्रॉन पुंज का तरंगदैर्ध्य
- θ = प्रथम उच्चिष्ठ (n = 1) के संगत विवर्तन कोण हो, तो
- फ्रानहॉफर विवर्तन सिद्धान्त से
a sin θ = nλ
or Δy sin θ = λ (∵ a = Δy and n = 1)
∴ Δy = λ / sin θ
- यह Y-अक्ष की दिशा में इलेक्ट्रॉन की स्थिति ज्ञात करने की अनिश्चितता है।
- चूंकि इलेक्ट्रॉन प्रारम्भ में x-दिशा में गति करता है, अतः द-ब्रोगली परिकल्पना से इसका प्रारम्भिक संवेग, p = h/λ
- संवेग का Y-घटक [- (h / λ) sin θ] से (h / λ) sin θ के मध्य होगा।
- अतः एकल स्लिट द्वारा इलेक्ट्रॉन का विवर्तन हाइजेनबर्ग अनिश्चितता सिद्धान्त का पालन करता है।
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